ऊँ ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।।
ज्योतिष शास्त्र क्या है और हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है?जानें ज्योतिष शास्त्र के बारे में, ज्योतिष आचार्य श्री बी. के. श्रीवास्तव जी से ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम् अर्थात सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप से ग्रह, नक्षत्र आदि के स्वरूप, काल, परिभ्रमण , संचार, ग्रहण और स्थिति संबधित घटनाओं का ज्ञान एवम शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है। सौरमंडल में स्थित ग्रह नक्षत्रों की गणना के द्वारा किसी व्यक्ति के भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पता लगाया जा सकता है साथ ही यह भी मालूम किया जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में कौन-कौन से घातक अवरोध उसकी राह रोकने वाले हैं और इन सब की जानकारी के लिए ज्योतिष शास्त्र या कहें तो ज्योतिष विज्ञान ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा जातक को सही दिशा प्राप्त होती है।ज्योतिष आचार्य श्री बी.के.श्रीवास्तव जी के अनुसार, जिस समय मनुष्य का जन्म होता हैं उस क्षण का विशेष महत्व है यह वही क्षण है जो व्यक्ति को जीवन भर प्रभावित करता है। इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि प्रत्येक क्षण में ब्राह्मंडीय ऊर्जा की विशिष्ट शक्ति धाराएं किसी-न-किसी बिंदु पर किसी विशेष परिमाप में मिलती हैं। मिलन के इन्हीं क्षणों में मनुष्य का जन्म होता है और इस क्षण में यह निर्धारित हो जाता है कि ऊर्जा की शक्ति धारायें भविष्य में किस क्रम में मिलेंगी और जीवन पर अपना क्या प्रभाव डालेंगी। व्यक्ति के जन्म का क्षण सदा ही उसके साथ रहता है। जन्म के क्षण का विशेष महत्व है क्योंकि यह बताता है कि जीवात्मा किन कर्मबीजों, प्रारब्धों व संस्कारों को लेकर किन और कैसे उर्जा-प्रवाहों के मिलन बिंदु के साथ जन्मी है। जन्म का क्षण इस ब्राह्मंड में व्यक्ति को व उसके जीवन को एक विशेष स्थान देता है। यह कालचक्र में ऐसा स्थान होता है जो कभी नही बदलता, और इनके मिलन के क्रम के अनुरूप ही सृष्टि, व्यक्ति, जंतु, वनस्पति, पदार्थ, घटनाक्रम इत्यादि जन्म लेते हैं इसी क्रम में उनका विलय-विर्सजन भी होता है।ज्योतिष विज्ञान के महर्षियों ने इस ब्रह्माण्डीय ऊर्जा प्रवाहों को 4 चरणों वाले 27 नक्षत्रों, 12 राशियों एवं 9 ग्रहों में वर्गीकृत किया है। इनमें होने वाले परिवर्तन क्रम को उन्होंने विंशोत्तर, अष्टोत्तर एवं योगिनी नक्षत्रों के क्रम में देखा है। इनकी अंतर और प्रत्यंतर दशाओं के क्रम में इन ऊर्जा -प्रवाहों के परिवर्तन क्रम की सूक्ष्मता को समझा जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र का सही ज्ञान प्राप्त कर, योग ज्योतिष ज्योतिष विज्ञान को सही ढंग से जान कर मनुष्य अपनी मौलिक क्षमताओं को पहचान सकता है और कालचक्र में अपनी स्थिति को प्रभावित करने वाले ऊर्जा प्रवाहों के क्रम को पहचान कर ऐसे अचूक उपायों को अपना सकता है जिससे कालक्रम के अनुसार परिवर्तित होने वाले ऊर्जा प्रवाहों के क्रम से उसे क्षति न पहुँचे और इस कालक्रम का ज्ञान किसी को एक योग्य ज्योतिषी ही करा सकता है और ज्योतिष के ज्ञान का यही विशेष महत्व है और इस ज्ञान की महत्वपूर्ण कड़ी एक योग्य ज्योतिषी ही है। जो महादशाओं, अंतर्दशाओं एवं प्रत्यंतरदशाओं में ग्रहों के मंत्र, दान की विधियों, रत्नों, रुद्राक्षों का प्रयोग आदि बताकर इनके दुष्प्रभावों से आपको बचा सकता है और जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान कर जीवन को सफल और सरल बना सकता है।